शिशुनाग वंश (Shishunaga Dynasty) के महत्वपूर्ण बिंदु
शिशुनाग वंश की स्थापना
- शिशुनाग वंश की स्थापना शिशुनाग (Shishunaga) ने की थी।
- यह वंश मगध साम्राज्य का दूसरा शाही वंश था।
- शिशुनाग वंश ने हर्यक वंश (Haryanka Dynasty) के अंतिम शासक नागदासक (Nagadaska) को हटाकर सत्ता प्राप्त की।
- इस वंश का शासनकाल लगभग 413 BCE से 345 BCE तक रहा।
शिशुनाग वंश के प्रमुख शासक
1. शिशुनाग (Shishunaga) (413 BCE - 395 BCE)
- इस वंश का संस्थापक था।
- राजधानी: पहले राजगीर (Rajgir), बाद में पाटलिपुत्र (Patliputra)।
- उसने अवंति राज्य (Ujjain) को मगध में मिलाया, जिससे मगध सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया।
- कोशल, काशी और विदेह को अपने शासन में शामिल किया।
2. कालाशोक (Kalasoka) (395 BCE - 367 BCE)
- शिशुनाग का उत्तराधिकारी था।
- दूसरी बौद्ध संगीति (Second Buddhist Council) का आयोजन वैशाली में किया।
- उसके शासनकाल में मगध पर कई बाहरी आक्रमण हुए।
- अंततः नंद वंश (Mahapadma Nanda) के विद्रोहियों ने उसे मारकर सत्ता हासिल कर ली।
शिशुनाग वंश की विशेषताएँ
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राजधानी परिवर्तन
- शिशुनाग ने राजधानी राजगीर से पाटलिपुत्र स्थानांतरित की।
- यह मगध को उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बनाने का महत्वपूर्ण कदम था।
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अवंति राज्य का विलय
- शिशुनाग ने अवंति (उज्जैन) को अपने साम्राज्य में मिला लिया।
- इससे मगध की शक्ति कई गुना बढ़ गई।
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बौद्ध धर्म का संरक्षण
- कालाशोक के शासनकाल में दूसरी बौद्ध संगीति आयोजित की गई।
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कला और संस्कृति
- इस काल में बौद्ध धर्म और वैदिक परंपराएँ दोनों फली-फूलीं।
शिशुनाग वंश का पतन
- कमजोर उत्तराधिकारी और आंतरिक कलह के कारण वंश कमजोर हुआ।
- महापद्म नंद (Mahapadma Nanda) ने 345 BCE में शिशुनाग वंश का अंत कर नंद वंश की स्थापना की।
निष्कर्ष
- शिशुनाग वंश ने मगध को उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य बना दिया।
- अवंति का विलय इस वंश की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।
- अंततः महापद्म नंद ने इस वंश को समाप्त कर नंद वंश की नींव रखी।
PDF के लिये इस लिंक पर क्लिक करें ----> Shishunag Vansh.pdf
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