कण्व वंश (Kanva Dynasty) का इतिहास
कण्व वंश की स्थापना
- कण्व वंश की स्थापना वासुदेव (Vasudeva) ने की थी।
- यह वंश शुंग वंश (Shunga Dynasty) के अंतिम शासक देवभूति (Devabhuti) को पराजित कर सत्ता में आया।
- कण्व वंश ने लगभग 75 BCE से 30 BCE तक शासन किया।
- यह वंश ब्राह्मण जाति से संबंधित था, इसलिए इसे ब्राह्मण वंश भी कहा जाता है।
कण्व वंश के प्रमुख शासक
1. वासुदेव (Vasudeva) (75 BCE - 66 BCE)
- कण्व वंश का संस्थापक था।
- उसने अंतिम शुंग शासक देवभूति की हत्या कर शासन की बागडोर संभाली।
- पाटलिपुत्र (Patliputra) को अपनी राजधानी बनाया।
2. भौमिमित्र (Bhumimitra) (66 BCE - 52 BCE)
- वासुदेव का उत्तराधिकारी था।
- उसने अपने शासनकाल में शुंग वंश के कई परंपराओं को जारी रखा।
3. नारायण (Narayana) (52 BCE - 40 BCE)
- भौमिमित्र का उत्तराधिकारी था।
- शासनकाल में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ने लगी।
4. सुशर्मन (Susharman) (40 BCE - 30 BCE)
- कण्व वंश का अंतिम शासक था।
- 30 BCE में आंध्र सातवाहन वंश के संस्थापक सिमुक (Simuka) ने इसे हराकर कण्व वंश का अंत कर दिया।
कण्व वंश की विशेषताएँ
- शुंगों की तरह कण्व शासक भी ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे।
- उन्होंने वैदिक संस्कृति और हिंदू धर्म को संरक्षण दिया।
- हालांकि, इनके शासनकाल में आंध्र सातवाहनों और शक क्षत्रपों की शक्ति बढ़ने लगी।
- कण्वों का प्रभाव मुख्यतः मगध और मध्य भारत तक सीमित था।
कण्व वंश का पतन
- कण्व वंश की शक्ति धीरे-धीरे कमजोर हुई।
- सातवाहन वंश (Satavahana Dynasty) के शासक सिमुक ने 30 BCE में कण्व वंश को समाप्त कर दिया।
- इसके बाद सातवाहन साम्राज्य ने पूरे दक्षिण भारत में अपनी शक्ति स्थापित कर ली।
निष्कर्ष
कण्व वंश एक ब्राह्मण वंश था, जिसने शुंग वंश के बाद मगध में शासन किया। इस वंश का शासनकाल अल्पकालिक था और लगभग 45 वर्षों तक चला। अंततः सातवाहनों ने इस वंश का अंत कर दिया और भारत के एक नए राजनीतिक युग की शुरुआत हुई।
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